अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 08 मार्च 2022
महिलाओं को भारतीय संविधान में प्रमुख धाराएं दिया गया है, जिसे आपको जानना चाहिए।
कार्यस्थल पर सम्मान
कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 बड़े उद्देश्य के साथ 9 दिसंबर, 2013 से प्रभाव में आया यह कानून उन संस्थाओं पर लागू होता है जहा दस से अधिक कर्मचारी काम करते हैं. यह कानून यौन उत्पीड़न के विभिन्न प्रकारों को चिह्नित करता है और यह बताता है कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न स्थिति में शिकायत किस प्रकार की जा सकती है। यह यौन उत्पीड़न की रोकथाम, निषेध और निवारण को स्पष्ट करता है और इसके उल्लंघन के मामले में पीड़िता को निवारण प्रदान करने में सहायता करता है. इस कानून के तहत कार्यस्थल का अर्थ कोई भी निजी या सरकारी संस्थान है. ऐसे सभी संगठन या संस्थान जिसमें 10 से अधिक कर्मचारी है, अपने एक आंतरिक शिकायत समिति गठित करने के लिए बाध्य है।
घरेलू हिंसा से रक्षा के उपाय
महिलाओं के साथ होनेवाली घरेलू हिंसा के विरुद्ध उन्हें सुरक्षा देने के लिए ‘घरेलू हिंसा कानून 2005’ गया था. इसके तहत एक महिला को यह अधिकार दिया गयै है कि अगर उसके साथ पति या ससुरालवालो द्वारा शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, लैगिक या आर्थिक अत्याचार किया जाता है या इससे संबंधित उसका शोषण होता है, तो तो पीड़ित उसके खिलाफ शिकायत दर्ज करा सकती है। यह कानून पिड़ित महिला को अपनी सुरक्षा की पूरी ताकत देता है। जिससे वह खुद की व संतान की रक्षा कर सकती है।
मुफ्त कानूनी मदद पाने का प्रवधान
दुष्कर्म की शिकार हुई महिला को मुफ्त कानूनी मदद पाने का पूरा अधिकार है. स्टेशन हाउस ऑफिसर के लिए जरूरी है कि वह विधिक सेवा प्राधिकरण को वकील की व्यवस्था करने के लिए सूचित करें। प्राधिकरण उसे मुफ्त कानूनी मदद उपलब्ध करायेगा। किसी महिला के खिलाफ अपराध होता है, तो वह किसी भी थाने में या कही से एफआईआर (FIR) दर्ज करा सकती है। इसके लिए जरूरी नहीं कि शिकायत उसी थाने में दर्ज हो जहा घटना हुई हो जीरो एफआइआर (FIR) को बाद में उस थाने में भेज दिया जायेगा, जिस क्षेत्र में ऐसा अपराध हुआ हो।
दहेज उत्पीड़न के खिलाफ अधिनियम
हमारे देश में महिलाओं को प्रतिषेध अधिनियम, 1961 के तहत अधिकार दिया गया है कि अगर उसके पैतृक परिवार या ससुरालवालों के बीच किसी भी तरह के दहेज का लेन-देन होता है तो वह इसकी शिकायत कर सकती है. आइपीसी (भारतीय दंड संहिता, 1860) की धारी 304B (दहेज हत्या) और 498A (दहेज के लिए प्रताड़ना) के तहत दहेज के लेन-देन और इससे जुड़े उत्पीड़न को गैरकानूनी और अपराध बताया गया है।
मातृत्व संबंधी लाभ का अधिकार
मातृत्व लाभ कामकाजी महिलाओं के लिए सिर्फ सुविधा ही नहीं बल्कि यह उनका कानूनी अधिकार भी है। मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत एक नयी माँ के लिए प्रसव के बाद मातृत्व अवकाश को 12 सप्ताह (तीन महीने) से बढ़ा कर 26 सप्ताह तक कर दिया गया है. इस अवधि में महीला के वेतन में कोई कटौती नहीं की जाती है और वह फिर से काम शुरू कर सकती है।
समान वेतन और काम का हक
समान पारिश्रमिक अधिनियम हर महिला को अपने कार्यस्थल पर काम करनेवाले समकक्षी पुरुष सदस्यों के समान ही वेतन का अधिकार देता है। इस कानुन अनुसार अगर बात वेतन या मजदूरी की हो तो लिंग के आधार पर किसी के साथ भी भेदभाव नहीं किया जा सकता. साथ ही समान योग्यता रखने वाली महिलाओं को पुरुषों “के बराबर काम और पद पोने का भी अधिकार है।
संपति को अधिकार
हिन्दू उत्राधिकार (संशोधन) अधिनियम 2005 में संपति की दो श्रेणीया है, पैतृक और स्वअर्जित. पैतृक संपत्ति में पुरुषों की वैसी अर्जित संपत्तिया आती है. जिनका चर पीढ़ी पहले तक कभी बटवारा नहीं हुआ हो। साल 2005 से पहले तक इनपर केवल बेटों का अधिकार होता था. लेकिन उसके बाद से बेटियों को भी बराबरी का अधिकार दे दिया गया। स्वअर्जीत संपति वह होती है जो कोई अपने पैसे से खरीदता है, यह संपती जिसे चाहे उसे दी जा सकती है। 2005 में हिंदू उत्तराधिकार कानुन में संशोधन हुआ। इसके बाद बेटी को पैतृक संपति में जन्म से ही साझिदार बना दिया गया है। बेटियों को इस बात का भी पूरा अधिकार दिया गया कि वह कृषि भूमिका बटवारा करवा सकती है. साथ ही शादी टूटने की स्थिति में वह पिता के घर जाकर बेटे के समान बराबरी का दर्जा पाते हुए जीवन निर्वाह कर सकती है।